ग्राम चौकीदारों का वेतन बढ़ाना, न बढ़ाना सरकार का नीतिगत मामला, हाईकोर्ट का पुलिस बल व होमगार्ड के बराबर वेतन देने की मांग वाली याचिका में हस्तक्षेप से इन्कार
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ग्राम चौकीदार पुलिस बल की 'तीसरी आंख' हैं, उनके वेतन और सेवा शर्तों से जुड़े संशोधन पर फैसला लेना सरकार का काम है, अदालत का नहीं। जब तक किसी कर्मचारी को दिया गया पारिश्रमिक स्पष्ट रूप से मनमाना, भेदभावपूर्ण या बेगार जैसा न हो, तब तक अदालत का हस्तक्षेप उचित नहीं है। हालांकि, सरकार को चौकीदारों के पद को 'समकालीन समय में प्रभावी और जीवंत' बनाए रखने के लिए उचित विधायी पहल करनी चाहिए।
इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की अदालत ने आगरा के लवकुश तिवारी समेत 1,486 याचियों की पुलिस बल व होमगार्ड के बराबर वेतन बढ़ाने की मांग वाली याचिका में हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया। कहा कि चौकीदार को पुलिस बल की 'तीसरी आंख' माना जा सकता है। लेकिन, सेवा शर्तों के मुताबिक इनकी स्थिति पुलिसकर्मी या होमगार्ड के बराबर नहीं है। लिहाजा, ये समान वेतन के हकदार नहीं हैं।
याचियों का दावा
याचियों ने दलील दी कि वे वर्ष 1987 से ग्राम चौकीदार के रूप में काम कर रहे हैं। करीब 37 वर्षों में अर्थव्यवस्था में बदलाव हुआ है। इसके बावजूद उन्हें महीने में केवल 2,500 रुपये मानदेय दिया जाता है।
चौकीदारों को पहली बार ब्रिटिश राज के दौरान नियुक्त किया गया था। उनके कामों पर तकनीकी प्रगति ने कब्जा कर लिया है। सरकार को बदलते दौर के साथ इनके बारे में सोचना चाहिए। – इलाहाबाद हाईकोर्ट