तीसरे बच्चे के लिए भी महिला मातृत्व अवकाश की हकदार, बच्चों की संख्या नहीं बन सकती है अवकाश न देने की वजह, सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नीतिगत रूप से प्रभाव छोड़ने वाले अहम फैसले में कहा कि मातृत्व लाभ महिला के प्रजनन अधिकारों का हिस्सा है और मातृत्व अवकाश उन लाभों का अभिन्न अंग है। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें सरकारी शिक्षिका को यह कहते हुए तीसरे बच्चे के जन्म के लिए मातृत्व अवकाश देने से इन्कार कर दिया गया था कि राज्य सरकार की नीति के अनुसार यह लाभदो बच्चों तक सीमित है।
जस्टिस अभय एस ओका व जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, मातृत्व लाभ प्रजनन अधिकारों का हिस्सा हैं। हाईकोर्ट के विवादित आदेश को खारिज किया जाता है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था कि मातृत्व अवकाश मौलिक अधिकार न होकर वैधानिक अधिकार या सेवा शर्तों से मिलने वाला अधिकार है।
मामले में महिला सरकारी कर्मचारी मातृत्व अवकाश का अनुरोध खारिज होने के बाद मद्रास हाईकोर्ट पहुंची थी। उसकी पहली शादी से दो बच्चे थे और शीर्ष पीठ ने कहा, मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017, दो से अधिक बच्चों पर मातृत्व अवकाश पर रोक नहीं लगाता। इसके बजाय, छुट्टी की अवधि को सीमित करता है-दो से कम बच्चों वाली महिलाओं के लिए 26 सप्ताह और अधिक बच्चों वाली महिलाओं के लिए 12 सप्ताह। यानी, बच्चों की संख्या के आधार पर मातृत्व अवकाश से इन्कार नहीं किया जाता।
तलाक के बाद दोनों पिता की कस्टडी में थे। 2018 में पुनर्विवाह के बाद, उसने तीसरे बच्चे के जन्म के लिए मातृत्व अवकाश मांगा, जो सेवा में शामिल होने के बाद पैदा हुआ पहला बच्चा था। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा था कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 5 में प्रसव की संख्या पर कोई सीमा नहीं रखी गई है, इसलिए मातृत्व लाभ का दावा किया जा सकता है। राज्य सरकार ने इसे चुनौती दी तो हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आदेश खारिज कर दिया। तब महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कार्यकारी आदेश 👇
तीसरे बच्चे के जन्म होने पर मातृत्व अवकाश देने से इनकार नहीं कर सकती सरकार – सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मातृत्व लाभ प्रजनन अधिकारों का हिस्सा है और मातृत्व अवकाश उन लाभों का अभिन्न अंग है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सरकार तीसरे बच्चे के जन्म होने पर मातृत्व अवकाश देने से इनकार नहीं कर सकती। जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द करते हुए दिया, जिसमें सरकारी स्कूल की शिक्षिका को तीसरे बच्चे के जन्म होने पर मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया गया था।
हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार के नीति के मुताबिक 2 बच्चों तक ही मातृत्व अवकाश का लाभ दिया जा सकता है। यह फैसला, उन 11 फैसलों में से एक है, जो जस्टिस ओका ने अपने अंतिम कार्य दिवस पर सुनाया है। फैसला पढ़ते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि मातृत्व लाभ प्रजनन अधिकारों का हिस्सा हैं और मातृत्व अवकाश उन लाभों का अभिन्न अंग है। इसलिए हाईकोर्ट के दो जजों के खंडपीठ द्वारा पारित फैसला खारिज किया जाता है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह सही है कि मातृत्व अवकाश मौलिक अधिकार नहीं है लेकिन वैधानिक अधिकार या सेवा शर्तों से प्राप्त अधिकार है।
यह है मामला
सुप्रीम कोर्ट कर रुख करने वाली शिक्षिका की पहली शादी से दो बच्चे थे व तलाक के बाद दोनों बच्चे अपने पिता की कस्टडी में थे। इस बीच शिक्षिका ने 2018 में दूसरी शादी की व उसके बाद उन्होंने तीसरे बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म के लिए उन्होंने मातृत्व अवकाश देने से इंकार कर दिया गया। नौकरी मिलने के बाद यह पहला बच्चा था। मातृत्व अवकाश नहीं दिए जाने के बाद महिला ने मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने महिला के हक में फैसला दिया। पीठ ने कहा कि 'मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 5 में प्रसव की संख्या पर कोई सीमा नहीं लगाई गई है।