अप्रैल 2026 में जनगणना शुरू होने की संभावना, जातिवार गणना में जियो फेंसिंग टैबलेट व AI का होगा प्रयोग
नई दिल्लीः आजादी के बाद पहली बार हो रही जातिवार गणना के सटीक आंकड़े जुटाने के लिए सरकार ने अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। जनगणना और जातिवार गणना डिजिटल होगी और सारे आंकड़े इलेक्ट्रानिक टैबलेट पर लिए जाएंगे। विभिन्न पैरामीटर पर आंकड़ों के विश्लेषण के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) के इस्तेमाल की भी तैयारी चल रही है।
जनगणना कराने वाले महापंजीयक और जनगणना आयुक्त कार्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार आंकड़े जुटाने के लिए इस्तेमाल होने वाले सभी टैबलेट की जियो फेंसिंग की जा रही है। जियो फेंसिंग की वजह से उक्त टैबलेट में आंकड़े तभी भरे जा सकेंगे, जब जनगणना कर्मी खुद उस जगह पहुंचेगा, जहां का डाटा उसे जुटाना है। है। यानी हर गली, मोहल्ला, गांव में इस्तेमाल होने वाला टैबलेट पहले से तय होगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आंकड़ों की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए यह फैसला किया गया है। एआइ के प्रयोग से आंकड़ों से निष्कर्ष तत्काल निकाला जा सकेगा।
अप्रैल 2026 में जनगणना शुरू होने की संभावना
अप्रैल 2026 में जनगणना शुरू होने की संभावना
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता। देश में जनगणना अप्रैल 2026 में शुरू हो सकती है। इस बार जनगणना के साथ जातीय जनगणना कराने की घोषणा की गई है। हालांकि जनगणना के पहले इस संबंध में कई तैयारियां की जानी हैं। इसके प्रारूप को अंतिम रूप देना होगा। साथ ही बजट का इंतजाम भी करना होगा।
जनगणना के साथ जातियों की गणना किस तरह होगी, इसकी आखिरी रूपरेखा तय करने से पहले विशेषज्ञों से बातचीत करनी होगी। साथ ही डिजिटल मोड में प्रस्तावित गणना को संपन्न करने के लिए सॉफ्टवेयर सहित अन्य तकनीकी काम भी पूरे करने होंगे। माना जा रहा है कि जातीय जनगणना में पिछड़ों सहित सभी जातियों की गिनती होगी, लेकिन इसे खुले फॉर्मेट में करने के बजाय विकल्प में से चुनने को कहा जाएगा।
उदाहरण के तौर पर केंद्रीय और राज्यों की सूचियों में उल्लिखित जातियों में से ही विकल्प चुनने को कहा जा सकता है। यह सूची आपस में मर्ज करके एक साझा सूची जनगणना के लिए तैयार हो सकती है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि जनगणना और जातीय गणना 2026 से शुरू होगी, क्योंकि 2001 में लोकसभा सीटों की संख्या वर्ष 2026 तक फ्रीज की गई थी। परिसीमन की कवायद भी 2026 से होगी।
अगर 2021 में जनगणना समय पर होती तो परिसीमन वर्ष 2031 की जनगणना के आधार पर होता। माना जा रहा है कि प्रशासनिक सीमाएं बदलने की छूट 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ेगी, यह पहले 1 जून 2025 थी। जनगणना की प्रश्नावली, सॉफ्टवेयर और तकनीकी उपकरण तैयार करने में एक-दो साल लगते हैं। इस संबंध में पहले से काफी काम किया भी जा चुका है। इसलिए जातीय जनगणना का प्रारूप तय होने के बाद इसे अप्रैल 2026 से शुरू करने में कोई बड़ी अड़चन नहीं होगी।
सारा प्रारूप तय होने के बाद फील्ड वर्क शुरू होता है, फिर डेटा सत्यापन और प्रकाशन में भी वक्त लगता है। एक अनुमान के अनुसार, जनगणना के लिए करीब 14 हजार करोड़ रुपये की जरूरत हो सकती है। इसके लिए केंद्र सरकार को बजटीय प्रावधान करना होगा। केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में 8,754 करोड़ रुपये मंजूर किए थे और 3,941 करोड़ रुपये नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर अपडेट करने के लिए रखे गए। लेकिन कोविड की वजह से जनगणना शुरू नहीं हो पाई थी। वर्ष 2025-26 के बजट में इस मद में सिर्फ 578 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया।
जनगणना की प्रक्रिया अगर 1 अप्रैल 2026 से शुरू होगी तो इससे पहले 1 जनवरी 2026 से भौगोलिक प्रशासनिक सीमाएं फ्रीज होंगी, जो 30 जून 2025 तक फ्रीज के दायरे से बाहर हैं। प्रशासनिक सीमाएं बदलने की छूट 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ेगी। इसके अलावा जातीय गिनती के लिए जनगणना अधिनियम 1948 में संशोधन करना होगा। देश में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। वर्ष 2021 की जनगणना कोरोना महामारी के कारण टाल दी गई थी। आखिरी बार पूर्ण जातीय जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन में हुई थी। जनगणना 2011 में भी हुई थी, लेकिन जाति आधारित आंकड़े सार्वजनिक नहीं हुए। आखिरी बार परिसीमन 2002 में हुआ था, जो 2001 की जनगणना के आधार पर 2008 तक लागू किया गया।