प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पारिवारिक विवाद चलते अनुकंपा नियुक्ति में देरी नहीं होनी चाहिए। देरी से योजना के मूल उद्देश्य बाधित हो जाते हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि विभाग दावे और प्रतिदावे पर विचार करते हुए उचित आश्रित की नियुक्ति बाध्यकारी शर्तों के साथ करे। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने नैना गुप्ता की याचिका पर दिया।
वाराणसी की नैना गुप्ता के पति यूको बैंक में लिपिक थे। 20 जनवरी 2024 को सेवाकाल के दौरान उनका निधन हो गया था। पत्नी ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया, लेकिन सास ने जरूरी दस्तावेज देने से इन्कार कर दिया और खुद दावा पेश किया, जिससे नियुक्ति अटक गई थी। नैना ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
कोर्ट ने कहा कि मृतक की मां की आयु 58 वर्ष है और सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष है। इसलिए उनकी नियुक्ति नहीं की जा सकती। वह अपने दूसरे बेटे के साथ रह रही हैं, जिसका वेतन 13,250 रुपये प्रतिमाह है। अपने ससुर के मकान में रहती हैं। वहीं, याची (मृतक की पत्नी) अपने नाबालिग बेटे के साथ अलग रह रही है और उसके पास अपना मकान नहीं है।
याची ने आश्वासन दिया कि वह अपनी सास की जरूरतों का ख्याल रखेगी और वेतन का 20 प्रतिशत देने को तैयार है। इस पर हाईकोर्ट ने यूको बैंक के वाराणसी क्षेत्रीय कार्यालय को याची की नियुक्ति का आदेश दिया और निर्देश दिया कि उसके वेतन से 20 प्रतिशत की कटौती कर हर माह मृतक की मां मीना गुप्ता के खाते में जमा किया जाए। कोर्ट ने बैंक को यह कार्यवाही दो माह में पूरी करने का निर्देश दिया।
अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु के बाद परिवार को आई आपदा से राहत देना है। इसलिए जहां पारिवारिक विवाद के कारण कई दावेदार हों, वहां सबसे उपयुक्त व्यक्ति की सशर्त नियुक्ति की जाए। नियुक्ति को टाला नहीं जाना चाहिए अन्यथा अनुकंपा नियुक्ति योजना का उद्देश्य विफल हो जाएगा। - इलाहाबाद हाईकोर्ट