प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति कोई विरासत या वंशानुगत अधिकार नहीं है। ये नियुक्तियां मामला 1 केवल उन मामलों में दी जानी चाहिए, जहां मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल वित्तीय सहायता की जरूरत है। इनमें निर्धारित नियमों और प्रक्रियाओं का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
इस टिप्पणी संग कोर्ट ने नियमों को दरकिनार कर अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले याची को राहत देने से इन्कार कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने विक्रांत सेंगर की याचिका पर दिया। हाथरस निवासी याची पिता की मृत्यु के बाद चार अक्तूबर 1990 को अनुकंपा के आधार पर सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्ति हुआ था। याची को तीन मार्च 2021 को इस आधार पर बर्खास्त कर दिया गया कि उसने रेलवे में अपनी पिछली सेवा और निष्कासन को छिपाया था।
साथ ही उसकी नियुक्ति समयसीमा समाप्त होने के बाद हुई। अपीलीय प्राधिकारी ने 18 सितंबर 2022 को उसकी बर्खास्तगी को बरकरार रखा। इस आदेश को याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने कहा, अनुकंपा नियुक्ति सामान्य चयन प्रक्रिया से हटकर की जाता है। इसके लिए एक विशेष प्रावधान है, जिसे ऐसे में प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने उमेश कुमार नागपाल बनाम हरियाणा राज्य और पुष्पेंद्र कुमार बनाम शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया। कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कर्मचारी की मृत्यु की तारीख से पांच साल के भीतर किया जाना चाहिए। इसका पालन नहीं किया तो यह माना जाएगा कि परिवार को वित्तीय संकट नहीं है। याची ने रेलवे में अपनी पिछली सेवा और निष्कासन को छुपाया है। यह धोखाधड़ी है और इससे प्राप्त कोई भी नियुक्ति शून्य होती है।
कोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग के सचिव को निर्देश दिया है कि वे जांच करें कि गलत नियुक्ति में किस अधिकारी की भूमिका है। ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति न हो इसके उपाया किए जाएं। इसके साथ ही याचिका खारिज कर दी।