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Tuesday, July 22, 2025

TDS रिफंड के लिए समय पर रिटर्न भरने की अनिवार्यता हो खत्म, लोकसभा में पेश किए गए इनकम टैक्स बिल 2025 में प्रवर समिति की सिफारिश

TDS रिफंड के लिए समय पर रिटर्न भरने की अनिवार्यता हो खत्म, लोकसभा में पेश किए गए इनकम टैक्स बिल 2025 में प्रवर समिति की सिफारिश

समिति ने मकान से होने वाली आय की गणना में भी बदलाव का सुझाव दिया

गैर लाभकारी संगठनों को मिलने वाले चंदे पर कर छूट जारी रखने का किया समर्थन


नई दिल्ली: लोकसभा की प्रवर समिति के अध्यक्ष और भाजपा सदस्य बैजयंत पांडा ने सोमवार को लोकसभा में इनकम टैक्स बिल 2025 पेश किया।

समिति ने बिल को और अधिक पारदर्शी, स्पष्ट और करदाता के लिए आसान बनाने की सिफारिश की है और इस दिशा में कई महत्वपूर्ण बदलाव का सुझाव दिया है। बिल में टीडीएस रिफंड पाने के लिए तय समय में इनकम टैक्स रिटर्न (आइटीआर) भरने की अनिवार्यता पर समिति ने कहा है कि जिन लोगों की आय कर के दायरे में नहीं आती है, उन्हें टीडीएस रिफंड पाने के लिए तय समयसीमा में रिटर्न भरने की अनिवार्यता से छूट दी जानी चाहिए। इतना ही नहीं उनसे जुर्माना वसूलने का भी कोई मतलब नहीं है।

समिति ने गैर लाभकारी संगठन (एनपीओ) को अज्ञात रूप से मिलने वाले चंदे पर 30 प्रतिशत तक के टैक्स के प्रविधान पर भी चिंता जाहिर करने के साथ कर छूट जारी रखने का समर्थन किया है। 4,000 से अधिक पन्नों वाली अपनी रिपोर्ट में समिति ने मकान से होने वाली आय की गणना में भी बदलाव की सिफारिश की है। वैसे ही, समिति ने पूंजी संपदा, इन्फ्रास्ट्रक्चर कैपिटल कंपनी की परिभाषा को स्पष्ट करने के लिए कहा है और टैक्स छूट से जुड़े मामले के सरलीकरण के लिए माइक्रो, स्माल इंटरप्राइजेज की नई परिभाषा को जोड़‌ने की सलाह दी है। 

हालांकि समिति ने बिल के उस प्रविधान को हरी झंडी दे दी है, जिसके तहत इनकम टैक्स अधिकारियों को टैक्स संबंधित छानबीन के दौरान करदाता के लैपटाप, ई-मेल व अन्य डिजिटल दस्तावेज को अपने अधिकारी में लेने की छूट दी गई है।

आम आदमी भी समझा सकेगा इनकम टैक्स कानूनः इनकम टैक्स कानून 1961 में बदलाव लाने के लिए इस साल फरवरी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में इनकम टैक्स बिल 2025 को पेश किया था, जिसे 31 सदस्यीय प्रवर समिति के पास समीक्षा के लिए भेजा गया था। बिल में वर्तमान के इनकम टैक्स कानून में अप्रासंगिक हो चुके सैकड़ों कानून को हटा दिया गया है और अध्याय में भी कटौती की गई है। 

कानून में बदलाव का मुख्य उद्देश्य यह है कि इसे इतना पारदर्शी और सरल बनाना है कि आम आदमी भी बिना किसी विशेषज्ञ की मदद के इनकम टैक्स कानून को खुद पढ़कर समझ सके। इसलिए नए कानून की भाषा को सरल और स्पष्ट करने की कोशिश की गई है। कानून के अलग-अलग अध्याय में दिए गए समान प्रविधान को एक जगह पर किया गया है। अब प्रवर समिति के सुझावों पर संसद में चर्चा होगी और फिर इसे पारित कराया जाएगा। वर्ष 2026 के अप्रैल माह से इनकम टैक्स के नए कानून को लागू करने की बात है।




टीडीएस रिफंड के लिए रिटर्न भरना जरूरी नहीं होगा, 
छोटे करदाताओं को मिलेगी बड़ी राहत

नई दिल्ली । छोटे करदाताओं को जल्द बड़ी राहत मिल सकती है। अब केवल टीडीएस रिफंड के लिए आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करने की अनिवार्यता खत्म हो सकती है। इसके बजाय सिर्फ एक फॉर्म भरकर रिफंड मिल सकेगा।

आयकर अधिनियम 2025 की समीक्षा कर रही संसदीय समिति ने यह सुझाव दिया है, जिसे सरकार ने स्वीकार भी कर लिया है। खबरों के अनुसार, समिति ने सरकार से सिफारिश की है कि ऐसे करदाताओं, जो कर के दायरे में नहीं आते हैं, लेकिन जिनसे टीडीएस वसूला गया है, उन्हें केवल रिफंड दावा करने के लिए आईटीआर दाखिल करने से छूट दी जाए। ऐसे मामलों में करदाता को राहत देने के लिए केवल एक सरल फॉर्म भरने की व्यवस्था हो, जिससे आसानी से रिफंड दावा किया जा सके।


सरकार ने सिफारिश को स्वीकार किया : बताया जा रहा है कि सरकार ने इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया है और यह प्रावधान आयकर अधिनियम-2025 में संशोधन के रूप में शामिल किया जाएगा। सीबीडीटी को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह ऐसे लोगों के लिए एक सरल प्रक्रिया या फॉर्म तैयार करे, जो कर सीमा से नीचे हैं और जिन्हें केवल टीडीएस रिफंड का दावा करना है।


ऐसे काम करेगी नई प्रणाली: बताया जा रहा है कि अब आईटीआर की जगह एक सरल फॉर्म पेश किया जाएगा। यह फॉर्म-26एएस में दिखने वाले टीडीएस के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया जाएगा। करदाता सिर्फ फॉर्म-26एएस के आधार पर नए दावा फॉर्म को भरकर विभाग से अपना रिफंड ले सकता है।


छोटे करदाताओं को बड़ी राहत मिलेगी
नई कर व्यवस्था के तहत अगर सालाना वेतन ₹12.75 लाख तक है और उसने जरूरी टैक्स दस्तावेज जमा कर दिए हैं, तो कर नहीं देना पड़ता। कई बार ऐसा होता है कि बैंक या नियोक्ता दस्तावेज न मिलने पर टीडीएस काट लेती है। ऐसे में लोगों को रिफंड के लिए आईटीआर भरना पड़ता है, जबकि उनकी आमदनी कर योग्य सीमा से कम होती है।

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