कांस्टेबल भर्ती 2018 मामले में राज्य की विशेष अपीलें खारिज
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस नीति को मनमाना और असांविधानिक करार दिया, जिसके तहत एक ही चयन प्रक्रिया से नियुक्त कांस्टेबल को अलग-अलग मामला 2 प्रशिक्षण बैच में भेजे जाने के आधार पर वेतन संरक्षण से वंचित किया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि यह नीति न सिर्फ मनमानी है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन भी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने राज्य सरकार की ओर से दाखिल विशेष अपीलें खारिज कर दीं। साथ ही आदेश दिया कि सरकार कांस्टेबल भर्ती 2018 के सभी नियुक्त अभ्यर्थियों को 12 हफ्ते में पहले बैच के प्रशिक्षण की तिथि से वेतन का लाभदिया जाए।
राज्य सरकार ने एकल पीठ के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें भूतपूर्व सैनिक श्रेणी के अभ्यर्थियों को पहले प्रशिक्षण बैच के समान वेतन संरक्षण देने का निर्देश दिया गया था। खंडपीठ ने राज्य की सभी विशेष अपीलें खारिज कर एकल पीठ के न्यायाधीश के निर्णय की पुष्टि कर दी।
राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि कोविड-19 महामारी और प्रशिक्षण केंद्रों में सीमित संसाधनों के कारण चयनित अभ्यर्थियों को चार चरणों में प्रशिक्षण देना पड़ा, जिससे पहले बैच को पहले नियुक्ति और वेतन लाभ मिला। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि प्रशासनिक कठिनाइयां या असाधारण परिस्थितियां भी किसी समान वर्ग के भीतर भेदभाव का आधार नहीं बन सकतीं।
कोर्ट ने भर्ती नियमों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि कांस्टेबल भर्ती नियमों के तहत नियुक्ति पत्र प्रशिक्षण से पूर्व जारी किया जाता है। प्रशिक्षण चयन प्रक्रिया का हिस्सा नहीं, बल्कि चयनित अभ्यर्थियों के लिए एक अनिवार्य औपचारिकता है। ऐसे में प्रशिक्षण बैच की तिथि के आधार पर वेतन और सेवा लाभों में अंतर करना न केवल अनुचित, बल्कि संवैधानिक समानता के सिद्धांत के भी विपरीत है।