सरकारी कर्मी की मानसिक रूप से अक्षम संतान परिवार पेंशन की अधिकारी – हाईकोर्ट
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा- नहीं दिखाना होगा आय प्रमाणपत्र, मेडिकल सर्टिफिकेट पर्याप्त
फैसले में केंद्र के पेंशन नियम का दिया हवाला, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले का भी किया जिक्र
नई दिल्लीः परिवार पेंशन के अधिकार पर मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा है कि सरकारी कर्मचारी की मानसिक रूप से अक्षम संतान परिवार पेंशन पाने की अधिकारी है। इस निर्णय में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मानसिक रूप से अक्षम संतान को आय का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उसके लिए केवल एक मेडिकल सर्टिफिकेट दिखाना पर्याप्त होगा, जिसमें उसकी शारीरिक अक्षमता के कारण आजीविका कमाने में असमर्थता का उल्लेख हो।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पेंशन को एक अधिकार माना जाना चाहिए, न कि यह कोई खैरात या उपहार है। जब मानसिक रूप से असमर्थ व्यक्ति को पेंशन का लाभ देने की बात आती है तो संबंधित प्राधिकरण को तत्परता दिखानी चाहिए। यह दृष्टिकोण उस परोपकारी उद्देश्य को पूरा करेगा जिसके लिए विधायी नियम बनाए गए हैं और इसे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के एक पहलू के रूप में देखा जाना चाहिए।
मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के न्यायाधीश जीआर स्वामीनाथन और जस्टिस के. राजशेखर की पीठ ने 19 जून 2025 को दिए गए फैसले में सेंट्रल सिविल सर्विस रूल (सीसीएस पेंशन रूल) 54 (6) का उल्लेख किया। इस नियम के अनुसार, यदि सरकारी कर्मचारी का बेटा या बेटी किसी विकलांगता या मानसिक रूप से अक्षम है और वह 25 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद भी जीवकोपार्जन में असमर्थ है तो उसे जीवनभर परिवार पेंशन मिलेगी।
कोर्ट ने कहा कि जब विधायी नियम केवल डाक्टर या मेडिकल बोर्ड के सर्टिफिकेट की बात करते हैं, जिसमें मृतक कर्मचारी के उस बेटे या बेटी के मानसिक या शारीरिक विकलांगता के कारण जीवकोपार्जन में असमर्थता का उल्लेख हो तो प्राधिकरण इसके अलावा और कुछ नहीं मांग सकता। इसके लिए सभी स्त्रोतों से होने वाली आय का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।
हाई कोर्ट ने यह भी बताया कि ऐसा ही नियम तमिलनाडु पेंशन रूल्स में भी लागू है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट के 1995 के भगवंती ममतानी बनाम भारत सरकार के निर्णय का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें मानसिक रूप से अक्षम बेटी को परिवार पेंशन पाने का अधिकार दिया गया था।
इस मामले में प्रिंसिपल अकाउंटेंट जनरल ने खंडपीठ में रिट अपील दाखिल की थी, जिसमें एकल पीठ के आदेश में की गई कड़ी टिप्पणियों को हटाने की मांग की गई थी। यह मामला मानसिक रूप से अक्षम बच्चे को परिवार पेंशन से संबंधित था। प्रतिवादी एवी जेराल्ड के पिता सरकारी कर्मचारी थे और उन्होंने मानसिक रूप से अक्षम अपने छोटे 'भाई के लिए परिवार पेंशन की मांग की थी। जब कोई नतीजा नहीं निकला तो उन्होंने हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए पेंशन का आदेश दिया। फैसले में कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस रहे जस्टिस टीएस अरुणाचलम की मानसिक रूप से अक्षम बेटी को परिवार पेंशन के मामले का भी उल्लेख किया है।