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Saturday, September 27, 2025

चेक बाउंस मामले में साक्ष्य दर्ज होने से पहले रकम देने पर बंद हो सकता है केस, सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामलों की वृद्धि को देखते हुए दिशानिर्देशों में किया बदलाव

चेक बाउंस मामले में साक्ष्य दर्ज होने से पहले रकम देने पर बंद हो सकता है केस, सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामलों की वृद्धि को देखते हुए दिशानिर्देशों में किया बदलाव


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रमुख शहरों की जिला अदालतों में चेक बाउंस के मामलों की अत्यधिक संख्या के लंबित रहने पर चिंता व्यक्त की है। शीर्ष अदालत ने लंबित मामलों को कम करने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिनमें स्वैच्छिक समझौता और अभियुक्तों को प्रोवेशन पर रिहा करना शामिल है। यह भी कहा है कि अगर अभियुक्त अपने साक्ष्य दर्ज होने से पहले चेक की राशि का भुगतान कर देता है, तो ट्रायल कोर्ट मामला बंद कर सकता है।

जस्टिस मनमोहन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने चेक बाउंस के मामलों की सुनवाई करते हुए निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) अधिनियम के तहत अपराधों के शमन पर 15 साल पुराने दिशानिर्देशों में फेरबदल किया। शीर्ष अदालत ने कहा कि विभिन्न निर्णयों में न्यायालय की ओर से बार-बार दिए गए निर्देशों के बावजूद भारत के प्रमुख महानगरों की जिला अदालतों में एनआई अधिनियम के तहत चेक वाउंसिंग के लंबित मामलों की संख्या अभी भी बहुत अधिक बनी हुई है। राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के आंकड़ों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि 1 सितंबर तक दिल्ली की जिला अदालतों में धारा 138 के तहत लंबित मामलों की संख्या 6,50,283 थी।

संशोधित दिशानिर्देशों के तहत, यदि अभियुक्त अपने साक्ष्य (अर्थात बचाव पक्ष के साक्ष्य) दर्ज होने से पहले चेक की राशि का भुगतान कर देता है, तो ट्रायल कोर्ट अभियुक्त पर कोई लागत या जुर्माना लगाए बिना मामले को बंद कर सकता है।


चेक राशि के पांच फीसदी अतिरिक्त भुगतान पर मिलेगी राहत

अभियुक्त ट्रायल कोर्ट की ओर से फैसला सुनाए जाने से पहले चेक राशि का भुगतान कर देता है, तो मजिस्ट्रेट कानूनी सेवा प्राधिकरण या ऐसे अन्य प्राधिकरण के पास चेक राशि का अतिरिक्त 5 प्रतिशत भुगतान करने पर अपराध के शमन की अनुमति दे सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसी तरह, यदि चेक की राशि का भुगतान सत्र न्यायालय या हाईकोर्ट में पुनरीक्षण या अपील के लिए किया जाता है, तो ऐसी अदालत इस शर्त पर अपराध का शमन कर सकती है कि अभियुक्त चेक की राशि का 7.5 प्रतिशत खर्च के रूप में अदा करे। अंततः, यदि चेक की राशि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जाती है, तो यह राशि बढ़कर चेक की राशि का 10 प्रतिशत हो जाएगी।




चेक बाउंस होने पर नहीं जाना पड़ेगा जेल, सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, शिकायतकर्ता से समझौते पर आरोपी सजा से बच जाएगा


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति चेक बाउंस मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर लेता है, तो वह जेल की सजा से बच सकता है। कोर्ट ने अहम फैसले में कहा, एक बार पार्टियों के बीच समझौता पत्र पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता है।


जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस का अपराध मुख्य रूप से दिवानी प्रकृति का है और इसे विशेष रूप से आपराधिक बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक निजी विवाद है, जिसे निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए आपराधिक क्षेत्र में लाया गया है।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला पलटा: सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस निर्णय को पलटता है, जिसमें दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के बावजूद चेक बाउंस मामले में सजा को रद्द करने से इन्कार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दोनों पक्षकार समझौता दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हैं और शिकायतकर्ता डिफॉल्ट राशि का पूर्ण और अंतिम निपटारा स्वीकार कर लेता है, तो धारा 138 के तहत कार्यवाही को बरकरार नहीं रखा जा सकता।


43 लाख मामले लंबित...दिसंबर, 2024 तक चेक बाउंस के 43 लाख से अधिक मामले लंबित थे। राजस्थान इस मामले में शीर्ष पर है, जहां 6.4 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है।


निपटान समझौते को नहीं कर सकते नजरअंदाज
खंडपीठ ने फैसले में कहा- पक्षकार समझौता इसलिए करते हैं ताकि वे मुकदमेबाजी की लंबी प्रक्रिया से बच सकें। अदालतें इस तरह के समझौते को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 147 के तहत निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट में चेक बाउंस के अपराध को समझौता योग्य अपराध बनाया गया है, भले ही आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधान इसके विपरीत हों। यह समझौता कार्यवाही के किसी भी चरण में हो सकता है, विशेष रूप से जब पक्षकार स्वेच्छा से सहमति पर पहुंचे हों।

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