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Thursday, September 4, 2025

चेक बाउंस होने पर नहीं जाना पड़ेगा जेल, सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत

चेक बाउंस होने पर नहीं जाना पड़ेगा जेल, सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, शिकायतकर्ता से समझौते पर आरोपी सजा से बच जाएगा


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति चेक बाउंस मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर लेता है, तो वह जेल की सजा से बच सकता है। कोर्ट ने अहम फैसले में कहा, एक बार पार्टियों के बीच समझौता पत्र पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता है।


जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस का अपराध मुख्य रूप से दिवानी प्रकृति का है और इसे विशेष रूप से आपराधिक बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक निजी विवाद है, जिसे निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए आपराधिक क्षेत्र में लाया गया है।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला पलटा: सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस निर्णय को पलटता है, जिसमें दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के बावजूद चेक बाउंस मामले में सजा को रद्द करने से इन्कार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दोनों पक्षकार समझौता दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हैं और शिकायतकर्ता डिफॉल्ट राशि का पूर्ण और अंतिम निपटारा स्वीकार कर लेता है, तो धारा 138 के तहत कार्यवाही को बरकरार नहीं रखा जा सकता।


43 लाख मामले लंबित...दिसंबर, 2024 तक चेक बाउंस के 43 लाख से अधिक मामले लंबित थे। राजस्थान इस मामले में शीर्ष पर है, जहां 6.4 लाख से अधिक मामले लंबित हैं। इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है।


निपटान समझौते को नहीं कर सकते नजरअंदाज
खंडपीठ ने फैसले में कहा- पक्षकार समझौता इसलिए करते हैं ताकि वे मुकदमेबाजी की लंबी प्रक्रिया से बच सकें। अदालतें इस तरह के समझौते को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 147 के तहत निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट में चेक बाउंस के अपराध को समझौता योग्य अपराध बनाया गया है, भले ही आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधान इसके विपरीत हों। यह समझौता कार्यवाही के किसी भी चरण में हो सकता है, विशेष रूप से जब पक्षकार स्वेच्छा से सहमति पर पहुंचे हों।

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