लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पिछले 15-20 साल से पुलिस कर्मियों के गलत वेतन निर्धारण के मामले में अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने ऐसे 53 मामलों में पुलिस के तृतीय, चतुर्थ श्रेणी कर्मियों से अधिक वेतन वसूली के आदेशों को रद्द कर दिया। साथ ही याचियों से अधिक वसूला गया वेतन या की गई कटौती अथवा समायोजित धनराशि आठ हफ्ते में उन्हें वापस करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने 16 जनवरी 2007 के हाईकोर्ट ने कहा, याचियों से अधिक वसूला गया वेतन आठ हफ्ते में वापस करें और शासनादेश के तहत याची पुलिस कर्मियों का पक्ष सुनकर उनका वेतन निर्धारण करने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने यह फैसला अमेठी जिले में बतौर पुलिस अनुवादक/वरिष्ठ लिपिक पद पर तैनात इबरार अहमद व मदन जी शुक्ल समेत 53 पुलिस कर्मियों के गलत वेतन निर्धारण मामले में दाखिल याचिकाओं को मंजूर करके दिया। याचिकाओं में याची पुलिस कर्मियों को कथित रूप से भुगतान किए गए अधिक वेतन की वसूली के आदेशों को चुनौती दी गई थी। याचियों का कहना था कि अधिक वेतन भुगतान के नाम पर इसकी वसूली के आदेश कानून की मंशा के खिलाफ हैं। क्योंकि कानूनी प्रावधानों के तहत उनका वेतन निर्धारण ही शासनादेश के तहत नहीं किया गया।
कोर्ट ने मामले में पहले राज्य सरकार के वकील से पूछा था कि याचियों का गलत वेतन निर्धारण करने के जिम्मेदारों के खिलाफ क्या कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित है? एक याची के अधिवक्ता पंकज पांडेय का कहना था कि वर्ष 2010 से याची का गलत वेतन निर्धारण किए जाने की कारण बताओ नोटिस उसे दिया गया। इसका याची ने जवाब भी दे दिया। इसके बावजूद याची को 2010 से मिले कथित अधिक वेतन की वसूली की प्रक्रिया में प्रतिमाह उसके वेतन से करीब छह हजार रुपये की कटौती की जाने लगी। इसपर, कोर्ट ने सरकारी वकील से खास तौर पर पूछा था कि पुलिस विभाग, कर्मियों को दिए जा रहे वेतन के गलत निर्धारण को ठीक से निर्धारित करने में एक से दो दशक से अधिक समय क्यों ले रहा है।