प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी आपराधिक मामले का लंबित होना अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से इन्कार करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति अजित कुमार ने देवरिया के महेश सिंह चौहान की याचिका पर यह टिप्पणी की। कहा कि नियोक्ता को अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए अपने विवेकाधिकार का प्रयोग निष्पक्ष रूप से करना चाहिए।
कोर्ट ने अवतार सिंह बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि याची को नियुक्ति पाने का अविभाज्य अधिकार नहीं है, लेकिन केवल आपराधिक मामले का लंबित होना आमतौर पर एक उम्मीदवार को नियुक्ति से इन्कार करने का आधार नहीं हो सकता है, विशेष रूप से अनुकंपा नियुक्ति के मामले में।
दरअसल, याची की अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उसके खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित था।
अनुकंपा नियुक्ति में व्यावहारिक रवैया जरूरीः हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि जहां नियमित नियुक्तियों में नियम सख्त होते हैं, वहीं अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जहां डीएम द्वारा चरित्र प्रमाण पत्र जारी किया गया है, वहां केवल आपराधिक मामले के लंबित रहने से अनुकंपा नियुक्ति की अस्वीकृति नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए संबंधित अधिकारियों को मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया है।