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Friday, June 5, 2020

लॉकडाउन काल में पूरा वेतन दिए जाने पर सरकार ने बदला रुख, सुप्रीम कोर्ट में कहा - यह नियोक्ता व कर्मचारियों के बीच का मसला

लॉकडाउन काल में पूरा वेतन दिए जाने पर सरकार ने बदला रुख

सुप्रीम कोर्ट में कहा, यह नियोक्ता व कर्मचारियों के बीच का मसला

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा- क्या बिना मजदूरों के आप इंडस्ट्रीज चला सकते हैं?


लॉकडाउन-1 (Lockdown) की घोषणा के बाद 29 मार्च को जारी गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) कि अधिसूचना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से पूछा कि क्या बिना मजदूरों (Laborers) के आप उद्योग चला सकते हैं. ऐसे में आपके द्वारा संतुलन बनाना चाहिए, वह नियोक्ता या कर्मचारी कि तरफ एकतरफा या झुका हुआ नहीं होना चाहिए. अदालत ने संतुलन बनाने कि टिप्पणी इसलिए की, क्योंकि अधिसूचना में लॉकडाउन के दौरान मजदूरों, कर्मचारियों को पूरा वेतन देने को कहा गया था.


जस्टिस अशोक भूषण कि अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार समेत अन्य पक्षकारों की दलीलों पर गौर करने के बाद इस मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया है. अदालत इस मामले में 12 जून को आदेश जारी किया जाएगा. तब तक किसी भी उद्योगपति या नियोक्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. पीठ ने इस मुद्दे पर गत माह अप्रैल में जवाब तलब किया था.


जवाब में मंत्रालय ने कहा कि यह 54 दिनों के लिए और सार्वजनिक हित में एक अस्थायी उपाय था. मंत्रालय कि ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि लोग करोड़ों में पलायन कर रहे थे. वे चाहते थे कि उद्योग जारी रहे. अधिसूचना श्रमिकों को रोकने के लिए थी, जो उन्हें केवल भुगतान किया जाता था. 29 मार्च की अधिसूचना की संपूर्णता को देखना होगा. यह मानव पीड़ा को रोकने के लिए लागू किया गया था. वैधता को अलग रखते हुए, यह नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच का मामला है.

नहीं किया भुगतान तो चलेगा मुकदमा
इस पर पीठ ने कहा कि आवश्यकता के अनुसार वेतन का 50 प्रतिशत भुगतान किया जा सकता था, लेकिन आपकी अधिसूचना ने 100 प्रतिशत वेतन का भुगतान करने को मजबूर कर दिया. यह 50 से 75 प्रतिशत के आसपास हो सकता था. ऐसे में सवाल यह है कि क्या आपके पास 100 प्रतिशत भुगतान का आदेश जारी करने कि शक्ति है. साथ ही अगर भुगतान करने में कोई असफल रहता है तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाने कि शक्ति है.


पीठ में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि सरकार ने औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों को लागू नहीं किया है. जिसमें आवश्यक भुगतान 50 प्रतिशत है लेकिन आपने 100 प्रतिशत का निर्देश जारी किया. जवाब में अटॉर्नी ने कहा कि लॉकडाउन अवधि के दौरान श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच का मामला है और इसमें हस्तक्षेप कि आवश्यकता नहीं है.


केंद्र ने कहा कि मजदूरों के कार्यस्थल से उनके घरों में पलायन रोकने के लिए मजदूरी का पूरा भुगतान करने का आदेश दिया था. लॉकडाउन के दौरान अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन देने संबंधी गृह मंत्रालय की अधिसूचना को नागरिका एक्सपोर्ट्स और फिक्स पैक्स प्राइवेट लिमिटेड सहित तीन निजी कंपनियों ने चुनौती दी है. इनके अलावा इसी तरह 11 अन्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) ने केंद्र के आदेश को चुनौती दी है और कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19(1) का उल्लंघन है.

इन याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि श्रमिकों को पूरी सैलरी देने के बजाय इसे घटाकर 70 फीसदी किया जाना चाहिए और इस वेतन की भरपाई केंद्र सरकार सरकारी योजनाओं जैसे कि कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) या पीएम केयर्स फंड में प्राप्त राशि से करें.

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