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Sunday, January 14, 2024

नैतिक पतन के मामलों में बरी व्यक्ति को सशस्त्र बलों में किया जा सकता है नियुक्त, हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

नैतिक पतन के मामलों में बरी व्यक्ति को सशस्त्र बलों में किया जा सकता है नियुक्त

हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला, आईटीबीपी में कांस्टेबल पद के लिए जारी नियुक्ति पत्र रद्द करने को दी गई थी चुनौती


चंडीगढ़। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि संदेह के आधार पर नैतिक पतन के अपराधों में बरी किए व्यक्तियों को सशस्त्र बलों में नियुक्त किया जा सकता है। ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त करने पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी पॉक्सो एक्ट में बरी किए गए व्यक्ति को भारत तिब्बत सीमा पुलिस में कांस्टेबल के रूप में नियुक्त करने पर विचार करने का निर्देश जारी करते हुए की है।


कैथल निवासी दीपक कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए बताया था कि उसे आईटीबीपी में कांस्टेबल के तौर पर नियुक्ति के लिए जारी पत्र 2022 में रद्द कर दिया गया था। याची ने बताया कि नियुक्ति पत्र रद्द करने का आधार गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा 2012 में जारी निर्देशों को बनाया गया था, जिसके अनुसार आमतौर पर किसी व्यक्ति के नैतिक अपराध में  मामले पर विचार कर सकता है।


बरी होने के बाद भी सशस्त्र बलों में नियुक्त नहीं किया जाता, लेकिन नियुक्ति पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है। ऐसे मामलों में सक्षम प्राधिकारी उम्मीदवार के याची ने बताया कि उसके पिता 1989 में आईटीबीपी में कांस्टेबल के रूप में शामिल हुए थे और 1996 में नौकरी के दौरान उनका निधन हो गया। 2012 में याची ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग की थी। 2018 में याची पर दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था लेकिन एक साल बाद उसे बरी कर दिया गया। 


2022 में केंद्र सरकार ने कुमार को नियुक्ति पत्र जारी किया था। नियुक्ति प्रक्रिया के दौरान याची ने आपराधिक मामले और खुद के बरी होने के बारे में खुलासा किया। खुलासे के बाद अधिकारियों ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि क्यों न उनकी नियुक्ति रद्द कर दी जाए क्योंकि उन्हें केवल संदेह के लाभ के आधार पर बरी कर दिया गया था। कुमार द्वारा जवाब दाखिल करने के बाद नियुक्ति पत्र रद्द कर दिया गया था।


बरी करने के फैसले के आधार को देखना जरूरी

हाईकोर्ट के समक्ष नियुक्ति रद्द करने को चुनौती देते हुए याची ने दलील दी कि पीड़िता और उसकी मां ने अदालत में गवाही दी थी कि याची ने अपराध नहीं किया है। केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि कुमार ने गृह मंत्रालय की ओर से जारी निर्देशों को चुनौती नहीं दी है, जिसके अनुसार यदि संदेह के लाभ के आधार पर बरी कर दिया जाता है या जहां गवाह मुकर गए हैं, तो एक उम्मीदवार को आम तौर पर नियुक्ति के लिए उपयुक्त नहीं माना जाएगा। सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस बंसल ने कहा कि मामले में बरी करने के फैसले के आधार को देखना जरूरी है।

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