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Friday, January 11, 2019

मृतक आश्रित कोटे के तहत होने वाली भर्तियों पर 30 दिन में फैसला लेने का है आदेश, नौकरी के लिए सालों से भटक रहे आवेदक

6:50 AM


• लखनऊ: मृतक आश्रित कोटे के तहत होने वाली भर्तियों पर एक महीने में फैसला लेने के सरकारी आदेश हैं। बावजूद इसके छह महीने से ज्यादा समय से 15 लोगों के मामले शासन में पेंडिंग हैं। इनमें बागपत के अभिषेक कुमार, महाराजगंज की सरोज, रायबरेली की पूनम मिश्रा, श्रावस्ती के राजू मिश्रा, जालौन के अनिल कुमार, रायबरेली के केसनलाल, उन्नाव के रोहित कुमार, चंदौली के कृष्ण कुमार रावत, लखीमपुर खीरी के सुजीत कुमार मिश्र, अलीगढ़ के निक्की कुमार, गोंडा के अंबरीश कुमार, कुशीनगर के चंद्रिका प्रसाद और मुजफ्फरनगर के रोहित कुमार भी हैं।

 दो ऐसे मामले में भी सामने आए हैं जो वर्षों सेे नौकरी पाने के लिए विभाग के चक्कर लगा रहे हैं। इनमें से एक हैं चंदौली के शंकर शरण, जो 2015 से और दूसरे हैं सिद्धार्थनगर के विनय कुमार मिश्र, जो 2017 से मृतक आश्रित कोटे से नौकरी पाने का इंतजार कर रहे हैं।

लेकिन
सीएम से भी लगा चुके हैं गुहार
सिद्धार्थनगर के विनय कुमार मिश्र के पिता आयुष विभाग के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे। उनका निधन नवंबर 2016 में हो गया था। जनवरी 2017 में उन्होंने बाबू पद के लिए मृतक आश्रित कोटे में नौकरी मांगी थी, लेकिन फाइल शासन में ही अटकी रही। इस बीच जब मई 2018 में क्लर्क पद पर भर्ती के लिए शासन ने रोक लगाई तो मई 2018 में उन्होंने चपरासी पद के लिए आवेदन किया। फिर फाइल निदेशालय से शासन को भेजी गई। फाइल अब तक वहीं है। 

विनय बताते हैं कि सांसद जगदंबिका पाल से भी मिले। सांसद ने आयुष निदेशक से जानकारी ली तो उन्हें जवाब मिला कि फाइलें अनुमोदन के लिए शासन भेज दी गई हैं, लेकिन अब तक वहां से कोई जवाब नहीं आया है। विनय सीएम योगी से भी गुहार लगाई लेकिन नतीजा नहीं निकला। 

चंदौली के चकियां थाना के सैदूपुर गांव के रहते हैं शंकर शरण। उनके पिता लालजी घर के इकलौते कमाने वाले थे। लालजी भटवारा खुर्द के आयुर्वेद चिकित्सालय में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे। उनका निधन सितंबर 2015 में हुआ तभी से शंकर के परिवार की हालत बिगड़ने लगी। घर गिरवी हो चुका है। मां बीमार है। बड़े भाई को लकवा मार गया है। पेंशन की रकम से घर का खर्च, मां की दवाई और भाई का इलाज मुश्किल हो गया है। 

तीन साल से फाइल निदेशालय और शासन के बीच झूल रही है। सात महीने पहले शंकर नौकरी का पता लगाने निदेशालय पहुंचे थे। केवल फोर्थ क्लास की नौकरी मिल सकती है। शंकर बताते हैं कि मैंने कहा-साहब! चपरासी ही बना दो। पूरा प्रॉसेस फिर हुआ लेकिन फिर फाइल शासन में लटक गई।
तीन साल से अटकी है फाइल
मुझे इतने मामलों के लंबित होने की जानकारी नहीं थी। मैं इस मामले को दिखवाता हूं। इतने समय तक मामला लंबित नहीं रहना चाहिए। -धर्म सिंह सैनी, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), आयुष

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