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Saturday, July 2, 2022

पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद में हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, गुजारा भत्ता देना पति का नैतिक कर्तव्य और दायित्व

पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद में हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, गुजारा भत्ता देना पति का नैतिक कर्तव्य और दायित्व


कहा, पत्नी और बच्चों के लिए गुजारा भत्ता देना पति का दायित्व


पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि वैवाहिक विवादों में गुजारा भत्ते का निर्धारण करते समय कोर्ट को पति-पत्नी के बीच झगड़े की गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक नहीं है कि दोनों में कौन गलत है। कोर्ट को केवल यह देखना है कि क्या पत्नी अपना जीवनयापन करने में असमर्थ है और पति के पास उसे उपलब्ध कराने के पर्याप्त साधन हैं। कोर्ट का यह भी विचार है कि अगर पति सक्षम है तो उसका नैतिक कर्तव्य और दायित्व बनता है कि अपनी पत्नी और बच्चों के जीवनयापन के लिए उचित गुजारा भत्ता दे।


जस्टिस सुवीर सहगल ने फरीदाबाद के एक व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए यह राय जाहिर की है। इस व्यक्ति ने 11 फरवरी, 2021 को फरीदाबाद पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे पत्नी और नाबालिग बेटे को पांच हजार रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।


याचिका के अनुसार इस जोड़े की शादी जून 2010 में फरीदाबाद में हुई थी । महिला के मुताबिक शादी के बाद से पति व परिवार के लोग दहेज के लिए उसे प्रताड़ित करते थे। गर्भवती होने पर ससुराल से बाहर कर दिया गया। उसका प्रसव पिता के घर पर हुआ और सुलह के बाद वह याचिकाकर्ता (पति) के पास वापस आ गई, लेकिन ससुराल पक्ष के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया । उसे फिर ससुराल से निकाल दिया गया।


फैमिली कोर्ट ने पति को पत्नी और नाबालिग बेटे के लिए प्रति माह पांच हजार रुपये गुजारा भत्ता देने आदेश दिया। इसके खिलाफ पति हाई कोर्ट पहुंचा। उसने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी उसके भाई से गर्भवती हुई थी और वही बच्चे का जैविक पिता है। पति ने बच्चे के पितृत्व से इन्कार किया। बताया कि पत्नी उसके साथ रहने के लिए तैयार नहीं थी । पत्नी ने भी पति पर आरोप लगाया था। कि वह शारीरिक रूप से अक्षम है। पति ने सरकारी अस्पताल में जांच कराई, जिसमें वह शारीरिक रूप से स्वस्थ पाया गया। पति ने बताया कि पत्नी व बच्चे को गुजारा भत्ता देने के लिए उसके पास कोई आय का ने साधन भी नहीं है। हाई कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि हम यह तय नहीं कर रहे कि कौन सही है और कौन गलत है, गुजारा भत्ता देना पति का नैतिक कर्तव्य और दायित्व है।


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